Friday, August 31, 2018

राहुल गांधी ने कहा नोटबंदी पीएम की ग़लती नहीं एक बड़ा स्कैम है

टबंदी और रफ़ायल डील के मुद्दे पर गुरुवार को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच काफ़ी तल्ख़ बयानबाज़ी हुई.
इसकी शुरुआत कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की प्रेसवार्ता से हुई जिसका बाद में बीजेपी ने जवाब दिया.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि नोटबंदी एक बहुत बड़ा स्कैम है जो ग़लती से नहीं बल्कि जानबूझकर हुआ है.
दिल्ली में कांग्रेस कार्यालय में राहुल गांधी ने कहा, "देश के कुछ सबसे बड़े उद्योगपतियो ने बैंक का लोन लिया था जो एनपीए में बदल गया था. नरेंद्र मोदी जी ने देश की जनता का पैसा लेकर, आपकी जेब से पैसा निकालकर, सीधा हिंदुस्तान के सबसे बड़े पूंजीपतियों की जेब में डाला. ये नोटबंदी का लक्ष्य था."
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के निर्णय ने देश की इकोनॉमी की धज्जियां उड़ा दीं. राहुल गांधी ने नोटबंदी को प्रधानमंत्री की ग़लती नहीं बल्कि एक बड़ा स्कैम करार दिया.
बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, "मैं इस प्रेसवार्ता के बाद कह सकता हूं कि राहुल गांधी एक बहुत ही अगंभीर राजनीतिक खिलाड़ी हैं. राहुल गांधी ने कहा कि लोगों से जेब से पैसा निकाल लिया गया. जेब काटना क्या होता है मैं साधारण तरीके से बताता हूं. ए से ज़ेड तक कांग्रेस पार्टी भ्रष्ट है."
बीजेपी प्रवक्ता ने दावा किया कि 'सर्वाधिक नक्सलियों का समर्पण नोटबंदी के दौरान हुआ था और इसके बावजूद राहुल गांधी नोटबं
उन्होंने कहा, "अनिल अंबानी ने कभी जहाज़ नहीं बनाए. वो 45 हज़ार करोड़ रुपए कर्ज़ में हैं. अनिल अंबानी जी ने कंपनी कुछ ही दिन पहले खोली. दूसरी तरफ़ सरकारी कंपनी एचएएल है जो 70 साल से हवाई जहाज़ बना रही है. कोई कर्ज़ा नहीं है. उनके पास हज़ारों इंजीनियर हैं."
राहुल गांधी ने कहा कि जो हवाई जहाज़ 520 करोड़ का था उसे आपने 1600 करोड़ रुपये में क्यों ख़रीदा.
बीजेपी प्रवक्ता का कहना था कि राहुल गांधी के पास कहने को कुछ नया नहीं है और रफ़ाल पर बैठकर उनका करियर लॉन्च नहीं होगा.
दी को गलत बताते हैं.'
बीजेपी ने राहुल गांधी को चुनौती दी कि वो उनमें से एक भी उद्योगपति का नाम बता दे जो बीते चार सालों में अरबपति बना हो.
संबित पात्रा ने कहा, "कांग्रेस पार्टी और गाँधी परिवार के पुरखों ने पैसा लूट-लूट कर जो रखा था, जीप स्कैम से अगस्ता वेस्टलैंड स्कैम तक ये सारे नोटबंदी के बाद पैसे कागज के टुकड़े बन गए."
रफ़ायल पर कांग्रेस का हमला
बुधवार को राहुल गांधी ने ट्वीट कर वित्त मंत्री को चुनौती दी थी कि वो रफ़ायल डील पर संयुक्त संसदीय समिति का गठन करें.
उन्होंने नाटकीय अंदाज़ में वित्त मंत्री अरुण जेटली को इसका जवाब देने के लिए 24 घंटों का वक्त दिया था. गुरुवार को एक और ट्वीट कर राहुल गांधी ने वित्त मंत्री को चुनौती याद दिलाई.
राहुल गांधी ने रफ़ायल डील पर अपना पुराना स्टैंड दोहराते हुए कहा कि ये भ्रष्टाचार का एक सीधा मामला है.

Thursday, August 30, 2018

中国经济发展与减排可共赢

一份研究认为,中国积极减排,从而改善能源结构、确保高生产率,中国经济将从中受益。

11月14日发布的这份《中国与新气候经济》报告,属于全球经济和气候委员会的新气候经济项目国别研究成果之一。

《报告》的作者之一、清华大学能源环境经济研究所研究员滕飞说,通过适当的政策设计,2030年达到温室气体排放峰值这一目标对中国经济的负面冲击,可以控制在GDP 的1%之内。如果考虑到其带来的降低空气污染的环境和健康协同效益,相当一部分的经济成本还可以被抵消。

《报告》预测:中国经济增速在2030年将回落至5%。“中国走低碳发展道路是不可避免的。中国必须转型,否则我们无法达到社会经济发展等其他远景。”中国外交部气候变化谈判特别代表高风谈到。

《报告》分析了GDP增速为7%和4%的情景下所带来的化石能源消费与碳排放结果,结果显示:较快的经济增长,使得碳排放绝对量的减排任务变得更加艰难;但如果中国还可以保持7%的GDP增长率,并从中拿出1%GDP用于节能改造、发展新能源技术等,中国对环境质量的改善将比低速增长率情景下容易得多。

在现有节能减排力度下,由于中国经济更易受到能源价格变动的冲击,受影响的产业部门占GDP的约20%,则接近50%的中国城市到2030年仍存在空气质量不达标的风险,尤其是长三角和京津冀地区的主要城市。能源和经济的结构性问题是不达标的主要原因。

同时,即使中国保持目前的节能政策力度,到2030 年石油的对外依存度将达到75%,天然气对外依存度将超过40%,煤炭也将大幅超出安全高效的科学产能,能源供应和能源安全方面存在巨大压力。

也就是说:如果不采取更积极的减排措施,中国可能付出经济和环境的双重代价。

国家气候变化专家委员会副主任、清华大学低碳经济研究院院长何建坤说道:“按照目前节能减排的政策和力度,中国到2030是不可能实现峰值的,很可能会推后。但现在有目标,有利于促进经济转型,建立起发展新能源的倒逼机制,并采取强有力的措施去实现。”

因此《报告》测算出在加速减排的情景下,中国的能源二氧化碳排放将在2030年左右停止增长并尽快开始下降,2030年的单位GDP二氧化碳排放强度会比2010年降低约58%。在这一目标下结合严格的末端处理措施和结构调整政策,可以在2030年实现中国主要城市空气质量的全面达标。

未来由于投资回报率的降低,投资拉动的高经济增长趋势是不可持续的,而资源约束对经济增长的负面影响正逐步显现。如果中国不能通过技术进步及生产率的提高部分抵消资源约束的负面作用,则中国有可能陷入低速增长的“中等收入陷阱”。

反之,在维持较高生产率的情形下,中国能保持更好的增长速度,2010-2020年达到7.9%,2020-2030年达到6%, - 达到4.6%。到2030年中国的经济规模将超过美国,并成为世界第一大经济体。

就在上一周,习近平和奥巴马发表了中美气候变化联合声明。《报告》的研究内容将有助于解读中国承诺目标的可行性。基于研究,《报告》建议在产能过剩的高耗能行业和经济相对发达的东部地区,首先引入总量减排目标,并逐步扩展成覆盖所有行业和所有地区的总量减排目标。

首先应对煤炭消费总量进行控制,使煤炭消费总量在2020 年后停止增长,并尽快实现绝对下降。新能源和可再生能源技术将成为未来经济新的增长点。

滕飞谈到,在进行温室气体排放和能源消费总量控制的同时,应继续推动化石能源的价格改革。通过价格改革可以使化石燃料价格体现隐藏的外部环境成本,逐步建立起有利于清洁能源和可再生能源发展的市场环境。通过竞争性的市场鼓励企业投资于低碳技术,并激发低碳技术领域的创新与发展。

“关于2030年达到峰值,其前体条件是年GDP碳强度的下降率要大于 的增长率,2030年左右GDP回落到5%左右。如果中国经济增长低于预期,则实现年份有可能提前。但是大多数人认为中国经济还需要快速增长一段时间,很大程度取决于经济发展前景。” 滕飞补充道。

Wednesday, August 29, 2018

尼泊尔山体滑坡幸存者面临的生存困境

两周前(8月2日),尼泊尔发生重大山体滑坡事件,辛杜帕尔乔克(加德满都附近的一个区)损失惨重。塔拉·阿迪卡里与自己的两个孩子就住在离山体滑坡几米远的地方。

山体滑坡发生时,滑下的山体阻塞了森科西河,形成巨大堰塞湖。为了疏通水道,附近的尼泊尔部队正在实施受控爆破。每一次爆破,阿迪卡里的脑海里都会浮现出那些已经逝去的邻居的面孔。

尽管尼泊尔政府已发出命令,要求居民离开受灾地区,阿迪卡里还是选择留了下来。她说:“他们(政府)让我们去临时棚户房。从家里走过去只需要一个小时,但是如果我去了,谁来照看我的家畜?我这所房子又会遭遇什么?这可是我们用尽一生的心血和努力劳作才贷款盖起来的房子,我们怎么能离开这里呢?”三年前,她的丈夫为了赚钱,跑去卡塔尔工作,现在仍然在努力偿还贷款。

8月2日发生在中国与尼泊尔边境地区的山体滑坡事件冲垮了尼泊尔的三座村庄,导致156人死亡。尼泊尔下游地区与邻国印度也因此担心会有山洪爆发。目前印度政府已将40万居民从比哈尔撤离。托塔帕尼是尼泊尔与西藏交界处的一个小镇。目前有1000余名朝圣者和游客在徒步西藏的归途中被困于此。在加德满都与该镇之间,不断有救援直升机飞过,援助被困游客,并为其带来补给。

该地区余震频繁,爆炸声不断。但是,留下来的人都在努力地生活着。比时努·帕拉居里已经60岁了,在这次灾难中他失去了姐姐,以及两个外孙和一个侄子。他说:“我们还是比较幸运的,至少我们找到了逝去亲人的遗体,还能给他们举行最后的仪式。不管遭遇什么困难,我们都应继续生活。” 现在的他在田地里忙着准备种植水稻。

在此次山体滑坡事件中,政府宣布有156人丧生,但救援部队只找到33具遗体。受灾村庄附近的一位救援武装警察说道:“我们在滑坡附近闻到死尸的味道,但岩石还在坠落,地块又极其不稳定,我们无法进去找到遇难者的遗体。”

70余座房屋顷刻倒塌。兰詹·阿迪卡里就读的学校也在其中。他是该校七年级的学生,他的6个朋友都在这次滑坡中遇难,但是他不知道学校里还有多少人也死于这场灾难。学校现在只剩一片废墟。“我希望学校能够重建,我还能继续上学。”他一边说着,一边从地里摘起玉米放进竹篮里。

滑坡附近的大多数村民白天都呆在自己家里,晚上去政府搭建的临时棚户房过夜。也有少数人无论白天还是晚上都呆在自己家里,萨帕纳·卡尔基就是其中之一。她说:“我们不能离开这里,因为别无选择。如果死亡是上帝的旨意,那么我们也会接受。”她也在田里忙着准备种植水稻。难者家属责怪尼泊尔政府并未全力救援山体滑坡中被困的群众,也没有提供足够的救灾物资。比时努·帕拉居里说:“我们现在收到的只有一袋大米,干豆,以及其他一些食材和床垫。除了这些,啥都没有。”政府官员称,现在的确无法立即为受灾群众重建家园,但是政府已经提供足够的救灾物资。地区救灾抢险小组委员会的官员尤巴拉杰·卡特尔说道:“我们为受灾群众准备了足够的食物和其他物资,并且已定期发放,所以他们说的物资不足问题并不存在。”

卡特尔称,约有500名受灾人员已获得援助物资。堰塞湖下游居民同样需要援助,但政府却心有余而力不足。“堰塞湖下游有上万居民,尽管居住在下游城市很危险,但是我们无法为尼印边界的上万人都提供援助物资。”卡特尔继续说道。阿尼哥高速路是连接尼泊尔与西藏的主要贸易路线,现在该高速公路的某些路段已经完全被损坏。卡特尔说:“我们正在努力打通其他路线,很快就能通行。”

山洪暴发的可能性依然很高

专家估计森科西河上形成的堰塞湖水量约为800万立方米。尼泊尔部队所采用的抽水措施收效甚微。特里布万大学的地质学教授苏博德·达喀尔博士在该地区监测堰塞湖时说道:“抽水还在持续,但要想将使下游居民都处在危险之中的如此巨大水量排空,实在太有挑战性。我们必须进行严密的检验,但是从总体观察来看,该水坝是由坚硬的岩石和泥土堆砌而成,立即溃堤的可能性不大。”

阿尼哥高速路沿线的许多下游旅游度假村和市场仍未全部重新开业。居民已将店里的货物转移到比较安全的地方,目前却开始慢慢地将货物运回。森科西河旅游度假村位于堰塞湖下游几千米远的苏库特,其经营者安让·卡德加说道:“我们白天呆在店里,晚上就住在地势较高的亲戚家里。” 在尼泊尔,山体滑坡是仅次于流行病的第二大危险灾害。尽管如此,尼泊尔却鲜少采取预防或减灾措施。地质学家曾要求政府绘制一份详细的尼泊尔山体滑坡图,并制订异地安置计划,减少人员伤亡。苏博德·达喀尔博士说道:“鉴于问题的严重性,应该设立一个独立的机构来处理山体滑坡事件,并定期在全国开展研究工作。可不幸的是,我们国家的地质环境脆弱,政府不仅 [对山体滑坡]重视不足,也没有建立特定的机构来处理这类问题。”

专家称,尼泊尔的土地使用政策并不完善,因此人们想在哪里定居就在哪里定居,只要那块土地属于他。最近刚刚卸任城市发展规划部部长一职的基肖尔·塔帕说道:“随着灾难发生的频率越来越高,伤亡人数也越来越多,政府迫切需要采取更为严格的土地使用政策,规定人们只能在经过严格地质考察的地方定居。尼泊尔政府虽已通过土地使用政策,但是

Sunday, August 26, 2018

बिहार की 'पॉलिटिकल खीर' से किसका मुंह मीठा करना चाहते हैं उपेंद्र कुशवाहा

केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने शनिवार को एक पॉलिटिकल खीर बनाने का नया फॉर्मूला दिया. आज इस बयान को आगे बढ़ाते हुए राजद नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि इस तरह की खीर की ज़रूरत है.
शनिवार को पिछड़ों के मसीहा कहे जाने वाले बीपी मंडल की जयंती थी. राजनीतिक दलों की बात करें तो सबसे बड़ा आयोजन, केंद्र और बिहार में सत्तारूढ़ एनडीए के घटक दल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने किया.
पटना के एसकेएम हॉल में आयोजित इस कार्यक्रम में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने पिछड़ों की व्यापक एकता की ज़रूरत को रोचक अंदाज़ में सामने रखा.
उन्होंने कहा, ''यदुवंशियों (यादव समाज) का दूध और कुशवंशी (कुशवाहा समाज) के चावल मिल जाएं तो खीर बनने में कोई दिक्कत नहीं होगी. खीर मतलब सबसे स्वादिष्ट व्यंजन. अब इस स्वादिष्ट व्यंजन को बनने से कोई रोक नहीं सकता है. लेकिन इसमें सिर्फ़ दूध और चावल से ही काम नहीं चलने वाला है, इसमें पंचमेवा की भी ज़रूरत पड़ती है. और उस पंचमेवा के लिए बीपी मंडल के इलाके में एक प्रचलित शब्द है- पंचफोरना. इसमें अतिपिछड़ा समाज के लोग, छोटी-छोटी संख्या वाली जातियों के लोग और शोषित-पीड़ित शामिल हैं. खीर को स्वादिष्ट बनाने के लिए उनके घर का पंचमेवा आवश्यक है.''
उपेंद्र कुशवाहा के इस बयान को उनके राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन के साथ जाने के संकेत के रूप में देखा जा रहा है. राजद पहले भी कुशवाहा को महागठबंधन में शामिल होने का न्यौता देता रहा है.
दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा ने कल अपने बयान में जिन यदुवंशियों का जिक्र किया, एक जाति के रूप में बिहार में उनकी आबादी सबसे ज़्यादा है. पिछड़े वर्ग की जातियों में उनके बाद 'कुशवंशियों' की आबादी है.
माना जाता है कि अभी के दौर में यादव समाज का बड़ा हिस्सा राजद के साथ है जबकि उपेंद्र कुशवाहा समाज के एक बड़े नेता माने जाते हैं.
अनुमान के मुताबिक ये दोनों जातियां कुल मिलाकर बिहार की आबादी का करीब 20 फ़ीसदी हैं और इनका किसी एक गठबंधन में होना उसकी जीत की संभावनाओं को काफ़ी बढ़ा देता है.
कुशवाहा के कल के बयान का राजद नेता तेजस्वी यादव ने समर्थन किया है. उन्होंने ट्वीट किया, ''निःसंदेह उपेन्द्र जी, स्वादिष्ट और पौष्टिक खीर श्रमशील लोगों की ज़रूरत है. पंचमेवा के स्वास्थ्यवर्धक गुण ना केवल शरीर बल्कि स्वस्थ समतामूलक समाज के निर्माण में भी ऊर्जा देते हैं. प्रेमभाव से बनाई गई खीर में पौष्टिकता, स्वाद और ऊर्जा की भरपूर मात्रा होती है. यह एक अच्छा व्यंजन है.''
उपेंद्र कुशवाहा और उनकी पार्टी ने पहले भी कई मौकों पर बिहार की नीतीश सरकार की आलोचना की है. इतना ही नहीं उपेंद्र ख़ुद को इशारे-इशारे में मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी बता चुके हैं.
इसके बावजूद उपेंद्र कुशवाहा के कल के बयान पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शहनवाज़ हुसैन का कहना है कि एनडीए एकजुट है.
शहनवाज़ ने बीबीसी से बातचीत में कहा, ''उपेंद्र जी ने सही तो कहा है. उपेंद्र जी को पता है कि भूपेंद्र यादव, नित्यानंद राय, रामकृपाल यादव, नंदकिशोर यादव और उपेंद्र कुशवाहा जी का चावल मिलेगा. खीर तो बनी हुई है पहले से. वही विकास की खीर है जिसे देश के लोग खा रहे हैं. दूध पर अधिकार अब किसी एक पार्टी का नहीं रह गया है. दूध पर ज़्यादा अधिकार अब भारतीय जनता पार्टी का है. बिहार में एनडीए के चारों दल मिल कर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे.''
वहीं जानकारों का मानना है कि चुनावी साल में ऐसे बयान आते रहते हैं और अंतिम समय में कौन कहां जाएगा, यह अभी पूरे दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार कुशवाहा के बयान को एक रणनीतिक बयान की तरह देखते हैं.
उन्होंने कहा, "पहले भी ऐसे हालात सामने आए हैं जब ये लगा कि उपेंद्र महागठबंधन में जा सकते हैं. हालांकि उन्होंने बार-बार इससे इनकार किया है. अभी फिर से उनका जो बयान आया है और जिस तरह से तेजस्वी ने इसका समर्थन किया है, उससे इन कयासों को बल मिला है कि वह एनडीए छोड़ सकते हैं."
अजय कहते हैं, "उपेंद्र कुशवाहा का एनडीए में बना रहना इस पर निर्भर करेगा कि भाजपा अपने घटक दलों के साथ किस तरह से सीटों का बंटवारा कर पाती है. उनके नए साथी नीतीश कुमार की चाहत है कि उन्हें ज्यादा सीटें मिलें. ये एक मसला बना हुआ है. नीतीश कुमार ने कहा भी था कि एक महीने के भीतर भाजपा की ओर से सीट बंटवारे का प्रस्ताव आ जाएगा. लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है.''
माना जाता है कि बीते साल नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के एनडीए में शामिल होने के बाद से ही कुशवाहा इस गठबंधन में सहज नहीं हैं. कुशवाहा लोकसभा चुनावों को लेकर अपनी रणनीति धीरे-धीरे सामने रख रहे हैं. वह एनडीए और महागठबंधन पर एक साथ निशाना साध रहे हैं. साथ ही जानकार यह भी मानते हैं कि उपेंद्र जिस भी गठबंधन में रहेंगे उसकी राजनीतिक खीर ज़्यादा स्वादिष्ट और मीठी होगी.

Friday, August 17, 2018

आँखों देखी: पटना के शेल्टर होम के भीतर का डरावना सच

दिन के 12 बज रहे हैं. हमलोग राजीव नगर के आसरा गृह (शेल्टर होम) पहुंचे हैं. बाहर पुलिस और मीडिया की भीड़ लगी है. आसरा गृह के बाहरी फाटक पर लोहे का ग्रिल लगा है. धूप तेज़ है और दरवाजे बंद पड़े हैं.
खिडकियों के शीशे धूप से चमक रहे हैं. हमने पहरे पर बैठे पुलिस वाले से कहा कि हमलोग जांच टीम से हैं, हमें अंदर जाने दिया जाए. दरवाज़े के दरार से कई आंखें हमें देख रही थीं. कोई बाहर नहीं आया. किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला.
पुलिस वाले ने कहा कि उन्हें किसी को अन्दर जाने देने की अनुमति नहीं है. काफ़ी मशक्कत के बाद आसरा गृह में हमें अन्दर जाने दिया गया.
भीतर बच्चियां हैं. कुछ बड़ी उम्र की, कुछ बिल्कुल छोटी. मुझे लग रहा था जैसे मैं किसी कब्रगाह में हूँ और वे अभी-अभी कब्र से उठ कर खड़ी हुई हैं. आँखें धंसी हुई, दुबली बाहें, बदन का सारा गोश्त सूख गया है, सिर्फ हड्डियां नज़र आ रही हैं.
पीठ के बल अस्त-व्यस्त बिस्तर पर कई लड़कियां पड़ी हुई हैं. जैसे उन्हें इस दुनिया से कोई मतलब नहीं. फटी-फटी आँखों से निहारती. कुछ नंगे फ़र्श पर ख़ामोश बैठी हैं. उन्हें देखकर लग रहा था कि बच्चियां पहले दौर के आतंक से गुज़र चुकी हैं.
उन्होंने अपनी बीमारी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है. सिर्फ़ एक नन्हीं बच्ची ताक़त से लड़ रही है.
आसरा गृह शहर से काफ़ी दूर है. वहां तक जाने के लिए सवारियां आसानी से नहीं मिलतीं. बरसात के पानी से यह इलाक़ा डूबा रहता है. सड़कों पर जगह-जगह गहरे खड्डे हैं. आसरा गृह में कुल 75 महिलाएं हैं. अलग-अलग उम्र की. दो अस्पताल में मौत से जूझ रही हैं. एक 17 साल की हैं और दूसरी 55 साल की.
दो की संदिग्ध मौत पहले ही हो चुकी है. तीन मंज़िल पर अलग-अलग कमरे हैं. इनमें से अधिकांश मानसिक रोगी हैं. कुछ ज्यादा बीमार हैं, कुछ कम. दिमाग़ी बीमारी से जूझ रही महिलाओं की देख-रेख के लिए कोई सुविधा नहीं है, न ही कोई डॉक्टर मौजूद है.
तीसरी मंज़िल पर कुछ बच्चियां हैं. एक नन्हीं बच्ची की आँखों में रोशनी नहीं है. उसकी उम्र 5 से 6 साल होगी. एक बच्ची नंगे फ़र्श पर पड़ी है. एक बच्ची के बदन पर घाव हैं. उनकी आँखें बंद हैं. पक्षी के नाखूनों की तरह उसकी नन्हीं उंगलियां बिस्तर के दोनों छोरों को नोच रही हैं.
उनका नन्हां चेहरा भूरे रंग की मिट्टी के मुखौटे की तरह सख़्त हो गया है. धीरे-धीरे उसके होठ खुले, उसने लंबी चीख़ ली. बच्ची का मुहँ अब भी खुला है. मक्खियाँ भिनभिना रही हैं. वो इतनी कमज़ोर हैं कि अपने चेहरे से मक्खियों को नहीं हटा सकती.
अब वो ख़ामोश हो गई हैं. उसका नन्हां सिकुड़ा शरीर अस्त-व्यस्त चादरों के बीच पड़ा है. उसके गाल अब भी आंसुओं से गीले हैं.
ये दृश्य भयावह हैं. जिस देश में स्वस्थ्य बच्चियों को हम मार देते हैं, जला देते हैं या ज़िंदा दफ़न कर देते हैं, उस देश में मानसिक रोग से पीड़ित अनाथ बच्चियों और औरतों के लिए कहाँ जगह है.
रिया, रूनी, मीरा, गुड़िया, लिली जैसी तमाम 75 महिलाएं और बच्चियां यहाँ कैसे लाई गईं? कब आईं? कहाँ से आईं? इनको क्या बीमारी है? इनका क्या इलाज चल रहा है? आसरा गृह के पास इनका कोई रिकॉर्ड नहीं है.
हमने सभी की फ़ाइल मंगवाई. सारी फ़ाइलें अधूरी हैं. जिससे उनके बारें में कोई सूचना नहीं मिलती हैं. 22 साल की मीरा देवी गूंगी हैं. दिमागी रूप से ठीक हैं. जब वो इस आसरा गृह में आई थीं तो अवन्तिका नाम की डेढ़ साल की बच्ची के साथ थीं. जिसकी पिछले दिनों मौत हो गई.
आसरा गृह के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है कि बच्ची की मौत किस हालत में हुई? जो दो महिलाएं पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल भेजी गई थीं, जिन्हें डॉक्टर ने मृत घोषित किया था, उनकी फ़ाइल भी वहां मौजूद नहीं है.अप्रैल, 2018. इस दिन आसरा गृह और समाज कल्याण विभाग के बीच हुए ऐग्रीमेंट के बाद वहां महिलाओं और बच्चियों को रखने की अनुमति दी गई थी. ये समझौता 11 महीने के लिए था. आसरा गृह को 68 लाख रुपए सालाना दिया जाना था.
बिना किसी जाँच के पैसे दे दिए गए. समाज कल्याण विभाग या ज़िला प्रशासन की तरफ़ से इस चार महीने में कोई अधिकारिक रूटीन निरीक्षण नहीं किया गया.
मानसिक रूप से 75 बीमार महिलाओं की देख-रेख के लिए जिन दो डॉक्टरों को रखा गया था, उनमें से डॉक्टर राकेश पिछले कई महीने से नहीं आ रहे थे. डॉक्टर अंशुमन भी रूटीन चेकअप के लिए नहीं आते थे. ज़रूरत पड़ने पर उनको बुलाया जाता था. वे भी फ़रार हैं.
वहां रह रही सभी महिलाएं और बच्चियां ख़ून की कमी की शिकार हैं. वे गहरी मानसिक बीमारी से जूझ रही हैं. कुछ बच्चियां स्वस्थ हैं पर उनकी देख-रेख की कोई अलग व्यवस्था नहीं है. दिन-रात उनके बीच रहते हुए वे भी बीमार हो रही हैं.
शायद इसी व्यवस्था से मुक्ति पाने के लिए इन्होंने 9 अगस्त की रात वहां से भागने की कोशिश की थी. इस आरोप में आसरा गृह के बगल में रह रहे वहां के निवासी बनारसी को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है.

Friday, August 10, 2018

जेल में चंद्रशेखर रावण से मिलना चाहते थे केजरीवाल, योगी सरकार ने ठुकराया आवेदन

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को यूपी सरकार से भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद रावण से मिलने की इजाजत नहीं मिली है. केजरीवाल ने योगी सरकार से उत्तर प्रदेश से सहारनपुर की जेल में बंद चंद्रशेखर से मिलने की इजाजत मांगी थी, जो उन्हें नहीं मिल सकी.

इसके बाद केजरीवाल ने ट्विटर पर योगी सरकार को अपने निशाने पर लिया है. उन्होंने लिखा, 'दलितों के नेता को यूपी की भाजपा सरकार ने राजनीतिक द्वेष के कारण काफी समय से जेल में रखा है. मैं उनसे मिलना चाहता था लेकिन ये अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि योगी सरकार ने मुझे इजाजत नहीं दी.चंद्रशेखर सहारनपुर जेल में रासुका की धाराओं में बंद हैं. केजरीवाल 13 अगस्त को सहारनपुर जेल में रावण से मिलना चाहते थे. उत्तर प्रदेश सरकार ने कानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री की मांग ठुकराई.

स्थानीय प्रशासन ने दावा किया है कि केजरीवाल और चंद्रशेखर आजाद के बीच राजनीतिक चर्चा हो सकती है और इससे कानून व्यवस्था खराब हो सकती है और माहौल बिगड़ सकता है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जेल मैन्युअल के मुताबिक रावण से उनके परिवार का ही कोई सदस्य मिल सकता है. आशंका जताई गई है कि अगर केजरीवाल उनसे मिलने के बाद प्रेस में बयान देते हैं, जो कि संभावित है, उससे भी जेल मैन्युअल का उल्लंघन होगा.

 आपको बता दें कि चंद्रशेखर को पिछले साल 2 नवंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट की बेंच ने सहारनपुर जातीय हिंसा से जुड़े सभी मामलों में जमानत दे दी थी. चंद्रशेखर को इस जातीय हिंसा का मुख्य आरोपी बनाया गया था. जेल में बंद चंद्रशेखर ने जमानत के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में अर्जी दी थी, जहां से उन्हें राहत मिली और सभी केस में जमानत मिल गई. मगर जमानत मिलते ही भीम आर्मी के चीफ की मुश्किलें और बढ़ गईं. बेल मिलने के बाद ही उन्हें रासुका के तहत निरुद्ध कर लिया गया. इसके बाद जेल में उनकी तबीयत भी खराब हो गई थी.

सहारनपुर प्रशासन ने पुलिस अधीक्षक से इस बारे में रिपोर्ट ली है और कहा है कि 13 अगस्त को केजरीवाल के सहारनपुर के प्रस्तावित दौरे के समय दलित और राजपूतों में संघर्ष हो सकता है. सहारनपुर के डीएम के मुताबिक चंद्रशेखर से मुलाकात के बाद केजरीवाल कोई बयान दे सकते हैं, जिससे कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है.
आपको बता दें कि चंद्रशेखर को पिछले साल 2 नवंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट की बेंच ने सहारनपुर जातीय हिंसा से जुड़े सभी मामलों में जमानत दे दी थी. चंद्रशेखर को इस जातीय हिंसा का मुख्य आरोपी बनाया गया था. जेल में बंद चंद्रशेखर ने जमानत के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में अर्जी दी थी, जहां से उन्हें राहत मिली और सभी केस में जमानत मिल गई. मगर जमानत मिलते ही भीम आर्मी के चीफ की मुश्किलें और बढ़ गईं. बेल मिलने के बाद ही उन्हें रासुका के तहत निरुद्ध कर लिया गया. इसके बाद जेल में उनकी तबीयत भी खराब हो गई थी.