Sunday, May 26, 2019

जम्मू-कश्मीर की जिस एक लोकसभा सीट की चर्चा

गुरदासपुर सीट से बीजेपी ने सनी देओल को अपना प्रत्याशी बनाया था जो वोटों के अंतर से चुनाव जीतकर चुने गए हैं. उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार सुनील जाखड़ को 82,459 वोटों से हराया.
इस सीट पर 2014 में भी बीजेपी ही जीत हुई थी. तब दिवंगत अभिनेता विनोद खन्ना ने यहां 1.36 लाख मतों से जीत हासिल की थी.
बॉलीवुड के एक्शन हीरो रहे सनी देओल की यह पहली राजनीतिक पारी है.
दोपहर को जब मतगणना चल रही थी तब सनी देओल ने अपनी जीत के रुझान पर मीड‍िया से बातचीत में कहा कि "मुझे बहुत खुशी है कि मोदी जी जीत रहे हैं. मुझे इस बात की खुशी है कि मेरी जीत हो रही है. अब बस मेरा एक ही उद्देश्य है कि मुझे जो जीत मिली है उसके बदले में काम करूं. अपने क्षेत्र को बेहतर बना सकूं. यही मेरी ज़िम्मेदारी है. लोगों ने जो प्यार द‍िया उससे बहुत खुशी मिली. मैं यहां कोई इरादा लेकर नहीं आया था, बस अपना काम करूंगा.''
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी को पांच सीटों आज़मगढ़, मैनपुरी, मुरादाबाद, संभल और रामपुर पर जीत मिली है.
आज़मगढ़ से अखिलेश यादव, मैनपुरी से मुलायम सिंह यादव, मुरादाबाद से डॉ. एसटी हसन, संभल से डॉ. शफीक़ुर रहमान बर्क और रामपुर से आज़म ख़ान जीते हैं.
इनमें से रामपुर की सीट चुनाव के दौरान बेहद चर्चा में रही क्योंकि बीजेपी ने यहां से फ़िल्म अभिनेत्री से राजनीति में आईं जया प्रदा को उतारा था और प्रचार के दौरान उन पर किये गये बयान की वजह से आज़म ख़ान के प्रचार करने पर प्रतिबंध भी लगाया गया था.
हालांकि, यहां की जनता ने आज़म ख़ान को अपना नेता चुना और उन्हें क़रीब 1 लाख 10 हज़ार वोटों से जीत मिली.
जया प्रदा को क़रीब साढ़े चार लाख वोट मिले वहीं आज़म ख़ान को लगभग साढ़े पांच लाख. वहीं तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के संजय कपूर (क़रीब 34 हज़ार वोट) का जमानत जब्त हो गया.
10. फजलुर्रहमान, सहारनपुर
उत्तर प्रदेश की सहारनपुर लोकसभा सीट पर गठबंधन भारी पड़ा है. यहां से गठबंधन से बसपा प्रत्याशी हाजी फजलुर्रहमान ने 22,417 वोटों से बीजेपी प्रत्याशी राघव लखनपाल शर्मा को हराया.
कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे. राघव लखनपाल 2014 में इसी सीट से संसद पहुंचे थे.
यह वहीं सीट है जहां लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान देवबंद में 7 अप्रैल को बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन की पहली संयुक्त रैली का आयोजन किया गया था और पहली बार अखिलेश, मायावती और अजित सिंह ने मंच साझा किया था.
11. प्रदीप सिंह, कैराना
बीजेपी ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश की कैराना सीट अपने कब्जे में कर लिया है. बीजेपी के प्रदीप सिंह ने यहां 92,160 वोटों से जीत हासिल की है.
गठबंधन की रालोद उम्मीदवार तबस्सुम हसन को 4,74,801 और प्रदीप सिंह को 5,66,961 वोट मिले. तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेसी उम्मीदवार हरेंद्र सिंह मलिक की वैसे तो जमानत जब्त हो गयी लेकिन वो गठबंधन की प्रत्याशी की हार की बड़ी वजह भी बने. उन्हें 69,355 वोट मिले.
2014 में यहां से बीजेपी की बड़े अंतर (2,36,828) से जीत हुई थी लेकिन बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन से खाली हुए इस सीट पर हुए उप चुनाव में विपक्षी एकता के सहारे रालोद उम्मीदवार तबस्सुम हसन की जीत हुई थी.
2019 के चुनाव में सपा-बसपा-रालोद के गठबंधन की वजह से यहां 2014 का प्रदर्शन दोहराना बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती थी.
12. सत्यपाल सिंह, बाग़पत
भारतीय जनता पार्टी की तरफ़ से मौजूदा सांसद सत्यपाल सिंह ने एक बार फिर मैदान मार लिया है.
हालांकि इस सीट पर 2014 की तुलना में उनकी जीत का अंतर बहुत कम रहा. उन्होंने आरएलडी प्रत्याशी जयंत चौधरी को 23,502 वोटों से हराया. 2014 में इसी सीट से वो 2,09,866 वोटों से जीते थे.
मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर सत्यपाल सिंह ने तब जयंत चौधरी के पिता अजित सिंह को इस सीट से हराया था. इस सीट से कांग्रेस ने अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतारा था.
बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हुए शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा लखनऊ में बीजेपी के राजनाथ सिंह से 3.47 लाख वोटों से चुनाव हार गई हैं. वो यहां से गठबंधन की सपा प्रत्याशी थीं.
पहली बार चुनाव मैदान में उतरीं पूनम को यहां क़रीब 25.59 फ़ीसदी वोट मिले और वो दूसरे स्थान पर रहीं.
2008 में अस्तित्‍व में आई गाज़ियाबाद सीट पर 2009 से ही बीजेपी का वर्चस्व बना हुआ है. एक बार फिर जनरल विजय कुमार सिंह यहां से संसद पहुंच गये हैं.
2014 में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी राज बब्बर को 5.57 लाख वोटों से हराया था.
इस बार उन्होंने गठबंधन के सपा प्रत्याशी सुरेश बंसल को 5.01 लाख मतों से हराया है. जबकि इस सीट पर तीसरे स्थान पर कांग्रेस की डॉली शर्मा रहीं जिन्हें 1.12 लाख वोट मिले.
बीजेपी के केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा (8.30 लाख वोट) ने एक बार फिर इस सीट से जीत हासिल की है. इस सीट पर उनकी जीत 2014 की तुलना में अधिक वोटों से हुई है.
2014 में वो 2.80 लाख वोटों से जीते थे जबकि इस बार उन्हें 3.37 लाख वोटों से जीत मिली है.
2015 में दादरी क्षेत्र के बिसाहड़ा गांव में हुई मोहम्मद अख़लाक़ की हत्या मामले को लेकर यह लोकसभा सीट चर्चा में रही है.
बीजेपी की हेमा मालिनी ने मथुरा सीट एक बार फिर जीत ली है. उन्होंने 2.93 लाख वोटों से जीत हासिल की.
2014 के आम चुनाव में भी हेमा मालिनी ही यहां से बीजेपी सांसद बनी थीं.
जाट और मुस्लिम वोटरों के वर्चस्व वाले इस सीट पर तब उन्होंने राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी को हराया था. इस बार उन्होंने राष्ट्रीय लोक दल के प्रत्याशी कुंवर नरेंद्र सिंह को हराया है.
2009 में यहां पहली बार लोकसभा चुनाव हुए जिसमें बसपा ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की.
इस बार यहां दूसरे स्थान पर महागठबंधन से बीएसपी प्रत्याशी सतवीर नागर (4.93 लाख) रहे. जबकि तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के डॉ. अरविंद कुमार सिंह (42 हज़ार वोट) की जमानत भी जब्त हो गई.
हरियाणा में एक बार फिर बीजेपी ने सभी सीटों पर जीत हासिल की है.
यहां तक कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा सोनीपत में बीजेपी के निवर्तमान सांसद रमेश चंद्र कौशिक से 1.64 लाख वोटों के अंतर से हार गए.
वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर भी सिरसा से हार गए और पार्टी की वरिष्ठ नेता कुमारी सैलजा अंबाला से चुनाव हार गयीं.

Friday, May 3, 2019

الوجه الآخر لحصار غزة في عيون أهلها : فقر وبطالة ومخدرات وجرائم غير مسبوقة في بشاعتها

استيقظت محافظة سيدي بوزيد التونسية على خبر مقتل 12 شخصا بينهم 7 عاملات في قطاع الفلاحة وأطفالهن وإصابة 19 آخرين أغلبهن من قرية واحدة.
ونشر نشطاء ومغردون صورا وفيديوهات وثقت لحظة وقوع الحادث وأخرى تظهر جثث النساء المتكدسة.
أصبحت هذه حوادث شبه يومية في تونس التي تعج أريافها بشاحنات صغيرة تقل عاملات إلى الحقول في ظروف لا تحترم شروط السلامة مما يجعلهن مهددات بالسقوط والموت دهسا بين عجلات السيارات.
وتعزو الجمعية التونسية للنساء الديموقراطيات هذه الحوادث المتكررة إلى تهاون الحكومة في فرض قوانين صارمة على وسائل النقل تحمي العاملات في القطاع الفلاحي.
وقالت وزيرة المرأة نزيهة لعبيدي إنها ستنسق مع الجهات المعنية لاتخاذ "الإجراءات اللازمة ضد من تثبت مسؤوليته عن الحادث وتعمده خرق قوانين النقل الآمن".
وذكرت فاجعة سيدي بوزيد التونسيين بواقع الولايات المهمشة التي انطلقت منها شرارة الثورة التونسية أواخر 2010.
ويرى نشطاء أن الحادثة كشفت مرة أخرى فشل الدولة في تحقيق العدالة الاجتماعية، إذ تساءل أحد المغردين قائلا: "كم من بوعزيزي تحتاج تونس حتى تتحقق المساواة الاجتماعية؟"
كما ذيل النشطاء تدويناتهم بصور وأسماء المتوفيات وطالبوا بمحاسبة المسؤولين عن الحادث وإنصاف عائلات الضحايا.
وأطلق نشطاء فيبسوك على الضحايا ألقابا عديدة مثل "شهيدات الخبز" و"شهيدات الحقرة (الظلم)" و "مولات التقريطة (صاحبات الأوشحة)" ليلحقن بركب مواطنين قضوا وهم يبحثون عن لقمة العيش أو يطالبون بحقهم في الحصول عليها.
وأشار نشطاء إلى أن معظم الضحايا أمهات معيلات وقد خلفن وراءهن عشرات اليتامى.
ومن بين أبرز الصور التي تداولها المدونون حول الحادثة، صورة تظهر وشاح إحدى الضحايا وقد رفعه أبناؤها كعلم فوق الدار.